मेरी खामोशी।
मेरी खामोशी।
ना जाने कौन से ।
गहरे तहखाने के।
ओट में हो गयी हैं ।
मेरी खुशियाँ।
हर बार ढूंढने की।
कोशिश करती हूँ।
फिर ज़रा ।
पलकों के झोंके से।
गिर कर अवशेष।
उन अरमानो पर।
ध्वस्त कर देते हैं।
मेरे अनकहे शब्दों को।
होठों को भींच।
दिया जाता है।
ना मुस्कुराने।
के लिए।
आँखो पर।
बाँध लो पट्टी।
जो तुम्हे कुछ।
और ना दिखाई दे।
रोक लो ।
अपने कदमों को।
पीछे मुड़कर।
वापस चलो।
नहीं है कोई राह ।
तुम्हारे लिए बनी।
जो दिखा दिया हमने।
सिर्फ वही तुम्हारी मंजिल है।
क्या यहीं रहेगी
मेरी ज़िंदगी की किताब।
किसी खामोश।
तहखाने में दबकर।
नीलम गुप्ता 🌹🌹(नजरिया)🌹🌹
दिल्ली
Aliya khan
17-Jun-2021 07:52 PM
Bahut khoob
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ऋषभ दिव्येन्द्र
17-Jun-2021 07:19 PM
वाह , क्या खूब लिखा आपने 👌👌
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NEELAM GUPTA
17-Jun-2021 11:32 AM
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद
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